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पंडित मदनमोहन मालवीय के जनआंदोलन का अपमान करता शासनादेश ====================================================


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Haridwar:

अनिल बिष्ट हरिद्वार। जिस अवच्छिन्न धारा के लिए पंडित मदनमोहन मालवीय ने जनआंदोलन चलाकर अंग्रेजों से लोहा लिया था । तत्कालीन हरीश सरकार ने उसी गंगा धरा प्रवाह को स्कैप चैनल संबंधी शासनादेश जारी कर पंडित मदन मोहन मालवीय के द्वारा चलाए जनआंदोलन की राजनीतिक भेंट चढ़ा दिया हैं । इस शासनादेश से न सिर्फ करोड़ों हिन्दुओं की आस्था को ही दर किनार किया गया बल्कि गंगा प्रवाह की अवच्छिन्न धारा के लिए चलाए गए जनआंदोलन का भी कहीं न कहीं देखा जाए तो हरीश सरकार द्वारा अपमान किया गया हैं । साधु संत, व्यापारी,पंडा पुरोहित माँ गंगा में अपनी जननी व लालन पालन करने वाली माता का स्वरूप देखते आए हैं वो ही एनजीटी व हाईकोर्ट के गंगा से 200 मीटर दायरे वाले निर्माणों के धवस्तीकरण के आदेशों के बाद से अपनी निजी स्वार्थ हित साधने के चलते उसी माँ गंगा रुपी स्वरुप को नहर बनाने पर अमादा रहे हैं । विगत वर्ष पूर्व तत्कालीन सीएम के बीजापुर गेस्ट हाउस में देर रात सफेदपोशों के साथ व्यापारी व पुरोहित समाज के लोग भी इसी शासनादेश जारी कराने के लिए जमा हुए थे । शासनादेश जारी होते ही कई सफेदपोश व्यापारियों की चांदी बन आई हैं । पंडा समाज सहित व्यापारियों व होटल व्यवसाईयों में से कईयों के मानचित्र एचआरडीए से स्वीकृत हो चुकें हैं । अब कहीं जाकर गंगा सभा की नींद टूटी हैं और उसने स्कैप चैनल के आदेशों के महीनों बाद इस शासनादेश पलटने का प्रस्ताव भेजा हैं। इनमें से कुछ ऐसे भी हैं जो सत्तारुढ़ दल में हैं और उपर तक पकड़ रखतें हैं बताया जा रहा हैं कि इन्हीं के दबाव में पूर्ववर्ती सरकार का फैसला नहीं पलट पा रहीं हैं गाय, गंगा का जयकारा लगाने वाली वर्तमान सरकार भी मात्र पूर्व सरकार के नक्शे कदम पर जाती दिख रहीं हैं । टीएसआर सरकार ने शराब से लेकर , खनन तक के लिए सुप्रीम कोर्ट तक का दरवाजा खटखटाया हैं मगर जो कार्य शासन स्तर से हो सकता हैं , जिस शासनादेश को अपने स्तर से पलट सकती हैं उस शासनादेश को पलटने में हीलाहवाली कर कहीं न कहीं तत्कालीन सरकार की तरह मालवीय जी के जनआंदोलन पर कालिख पोतने में तुली हुई हैं । मगर ‘गंगा की रेती देती न लेती ’ सरकार को इस बात क इल्म अवश्य रखना होगा । जिसका परिणाम वह 2017 के विधन सभा चुनाव में देख भी चुकी हैं।
एनजीटी के फैसले के बाद से हरिद्वार में एक बार फिर बहस शुरू हो गई थी कि हरकी पैड़ी पर गंगा है या नहर। बता दें कि राज्य सरकार वर्ष 2016 में शासनादेश जारी कर हरकी पैड़ी तक आने वाली धारा को नहर घोषित कर चुकी है। दूसरी ओर गंगा सभा का कहना है कि यह असली गंगा है। करोड़ों हिंदुओं की आस्था की केंद्र हरकी पैड़ी पर ही गंगा पूजन किया जाता है। यह हरिद्वार का मुख्य व्यावसायिक इलाका भी है। गौरतलब हैं कि वर्ष 2016 में एनजीटी और हाईकोर्ट ने हरिद्वार में गंगा के किनारे दो सौ मीटर के दायरे निर्माण धवस्त करने के आदेश दिए तो तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत की सरकार ने हरकी पैड़ी की धारा को ‘स्कैब चैनल’ (नहर) करार दे दिया। हरीश रावत का तर्क था कि व्यावसायिक नुकसान से बचाने के लिए यह निर्णय लिया गया। तब इसका गंगा सभा ने जबरदस्त विरोध किया। इस पर वर्तमान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने गंगा सभा को आश्वस्त किया कि फैसला बदल दिया जाएगा। मुख्यमंत्री के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए हरीश रावत ने कहा था कि ‘अगर मैंने गलत काम किया है तो वर्तमान सरकार व मुख्यमंत्री उसमें सुधार कर दें, मैं माफी मांगने को तैयार हूं।’ हालांकि शासनादेश पूर्ववत है। वहीं अब इस पर गंगा सभा के अध्यक्ष पुरुषोत्तम शर्मा और महामंत्री रामकुमार मिश्रा का कहना है कि हरकी पैड़ी पर गंगा है, इसे लेकर संदेह नहीं है, अग्रेजों ने भी इसे गंगा माना। यूपी भी इसे गंगा ही मानती हैं। दूसरी ओर एनजीटी के ताजा फैसले ने प्रशासन का असमंजस बढ़ा दिया है।

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