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ज्ञान का मंदिर कही जानें वाली पाठशालाएं धनाढ्य लोगों के धन बटोरने की दुकानें !


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Haridwar:

ज्ञान का मंदिर कही जानें वाली पाठशालाएं धनाढ्य लोगों के धन बटोरने की दुकानें !

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हरिद्वार। हर माता.पिता की ख्वाहिश होती है कि उनके बच्चे उनसे ज्यादा शिक्षित बनें। इसके लिए अभिभावक अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने की चाह में अच्छे से अच्छे स्कूल में पढ़ाना चाहते हैं। लिहाजा, इस सब के लिए अभिभावक अपनी निजी जरूरतों को भी किनारे कर देता हैं। अभिभावक अपने बच्चों की अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए हर कीमत चुकाने के लिए तैयार रहते हैं । स्कूलों की मनमानी का आलम यह है कि किसी ने एनुअल चार्ज में मोटी बढ़ोत्तरी कर दी है तो किसी ने यूनिफार्म मामूली फेरबदल कर पेरैंट्स को बच्चे के लिए नई यूनिफार्म भी खरीदने को विवश कर दिया है। किताबों के सिलेबस में भी मामूली बदलाव से नई क्लास के लिए नई किताबें खरीदनी होंगी। शिक्षा का नया सत्रा शुरू हो चुका है। प्रदेश सरकार की ओर राहत की आस लगाए बैठे एनुअल चार्ज के नाम अभिभावकों की जेब पर कैंची चलाने का काम निजी स्कूलों के प्रबंध तंत्र ने शुरू कर दिया हैं। कोई स्कूल टयूशन फीस के नाम पर तो कोई एनुअल चार्जेज के नाम पर फीस बढ़ा बैठा है। नवम्बर शुरू होते ही एक बार फिर फी का विवाद जोर शोर से उठेगा। अपने नौनिहालों को बेहतर शिक्षा दिलाने के उद्देश्य से अभिभावक उन्हें निजी स्कूलों में दाखिल कराते हैं लेकिन सालदरसाल ऐडमिशन शहरों के बड़े पब्लिक स्कूलों में पढ़ने वाले ज्यादातर बच्चों के मातापिता उन स्कूलों की चमकदमक से प्रभावित तो हैं लेकिन उन के द्वारा वसूली जा रही भारीभरकम फीस से दुखी व परेशान भी हैं। हजारों रुपए खर्च करने के बावजूद बच्चे स्कूल के बाद ट्यूशन पढ़ने को विवश हैं। इतना ही नहीं निजी स्कूल शैक्षिक व अशैक्षिक गतिविधियों के नाम पर भी धन बटोरने से बाज नहीं आ रहे हैं। न्याय की बात करने पर बच्चों को स्कूल से निकाल देने या उन का कैरियर खराब कर देने की धमकी देने में पीछे नहीं हैं। ज्ञान का मंदिर कहे जानें पाठशालाएं अब धनाढ्य लोगों के लिए व्यापार व धन बटोरने की दुकानें बन गया हैं।

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